|
खनिज
|
एक खनिज वह प्राकृतिक पदार्थ है जिसमें निश्चित रासायनिक व भौतिक गुण होते हैं । इनकी उत्पत्ति का आधार अजैविक , कार्बनिक या – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – –
|
|
खनिज के प्रकार
|
रासायनिक व भौतिक गुणों के आधार पर खनिज के प्रकार :-
- ( i ) धात्विक खनिज
- ( ii ) अधात्विक खनिज
धात्विक खनिज :-
- लौह अयस्क , तांबा व सोना , मैंगनीज और वाक्साइट आदि धातु से प्राप्त होते है , इन्हें धात्विक खनिज कहते है।
- – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – –
अधात्विक खनिज :-
- ये खनिज दो प्रकार के होते है । इनमें कुछ खनिज , कार्बनिक उत्पति के होते हैं , जैसे जीवाश्म ईधन , जिन्हें खनिज ईधन भी कहते है , जैसे कोयला और पैट्रोलियम । अन्य अकार्बनिक उत्पति के खनिज होते है । जैसे अभ्रक , चूना पत्थर और – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – –

|
|
भारत में खनिज एजेंसियाँ
|
- राष्ट्रीय अल्यूमिनियम कंपनी लि .
- भारतीय भूगर्भ सर्वेक्षण ( GSI )
- तेल एवं प्राकृतिक गैस आयोग ONGC ( 1956 )
- खनिज अन्वेषण निगम लि . MECL
- राष्ट्रीय खनिज विकास निगम
- भारतीय खान ब्यूरो
- भारत गोल्ड माइन्स लि .
- हिन्दुस्तान कॉपर लि .
- – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – –
|
|
भारत में खनिजों की प्रमुख पट्टियां
|
नोट :- खनिज पट्टियों का अर्थ होता है जहाँ खनिज पाए जाते है ।
- उतर पूर्वी पठारी पट्टी :- इस पट्टी के अंतर्गत छोटा , नागपुर , पठार ( झारखंड ) , उड़ीसा का पठार , पं. बंगाल तथा छतीसगढ़ के कुछ भाग सम्मिलित है । यहां पर विभिन्न प्रकार के खनिज उपलब्ध है । इनमें लोह अयस्क , कोयला , मैंगनीज आदि प्रमुख है ।
- दक्षिणी परिचमी पठारी पट्टी :- यह पट्टी कर्नाटक , गोआ , तमिलनाडु की उच्च भूमि और केरल में विस्तृत है । यह पट्टी लौह धातुओं तथा बॉक्साइट में समद्व है ।
- उत्तर पश्चिमी पट्टी :- यह पट्टी राजस्थान में अरावली और गुजराज के कुछ भाग पर विस्तृत है । यहां खनिज धारवाड़ क्रम की शैलों में पाये जाते है । जिनमें तांबा , जिंक , आदि प्रमुख खनिज है । गुजरात में पेट्रोलियम के – – – – – – – – – – – – – – – –
- – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – –
|
|
तांबे के लाभ तथा क्षेत्र
|
- बिजली की मोटरें , ट्रांसफार्मर , जेनरेटर्स आदि के बनाने तथा विद्युत उद्योग के लिए ताँबा अपरिहार्य धातु है ।
- यह एक आघातवर्द्धनीय तथा तन्य धातु हैं ।
- आभूषणों को मजबूती प्रदान करने के लिए इसे सोने के साथ मिलाया जाता है ।
- खनन क्षेत्र – झारखण्ड का सिंहभूमि जिला , मध्यप्रदेश में बालाघाट कर्नाटक में चित्रदुर्ग राजस्थान में झुंझुनु , अलवर व खेतड़ी जिले ।
- – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – –
|
|
मैंगनीज के लाभ तथा क्षेत्र :
|
- लौह अयस्क के प्रगलन के लिए महत्वपूर्ण कच्चा माल है ।
- इसका उपयोग लौह मिश्र धातु तथा विनिर्माण में भी किया जाता है ।
- खनन क्षेत्र :- उड़ीसा , कर्नाटक , महाराष्ट्र , मध्य प्रदेश , आन्ध्र प्रदेश व झारखण्ड ।
- – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – –
|
|
ऊर्जा संसाधन
|
- वह सभी संसाधन जो ऊर्जा प्रदान करते हैं , ऊर्जा संसाधन कहलाते हैं ।
- कोयला , पेट्रोलियम तथा प्राकृतिक गैस जैसे खनिज ईंधन ( जो जीवाश्म ईंधन के रूप में जाने जाते हैं ) , परमाणु ऊर्जा , ऊर्जा के परंपरागत स्रोत हैं ।
- – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – –
|
|
ऊर्जा संसाधनों के प्रकार
|
ऊर्जा के संसाधनों को मुख्य रूप से दो भागों में बांटा जाता है :-
- परंपरागत संसाधन
- अपरंपरागत संसाधन
- – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – –
|
|
ऊर्जा के परंपरागत संसाधन
|
- कोयला , पेट्रोलियम , प्राकृतिक गैस तथा नाभिकीय ऊर्जा जैसे ईंधन के स्रोत समाप्य कच्चे माल का प्रयोग करते हैं ।
- इन साधनों का वितरण बहुत असमान है ।
- ये साधन पर्यावरण अनुकूल नही है अर्थात पर्यावरण प्रदूषण में इनकी बड़ी भूमिका है ।
|
|
ऊर्जा के गैर अपरंपरागत संसाधन
|
- सौर , पवन , जल , भूतापीय ऊर्जा असमाप्य है ।
- ये साधन अपेक्षाकृत अधिक समान रूप से वितरित है ।
- ये ऊर्जा के स्वच्छ साधन और – – – – – – – – – – – – – – –
- – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – –
|
|
ऊर्जा के अपरम्परागत स्रोत
|
- सौर ऊर्जा – भारत के परिचमी भागों गुजराज व राजस्थान में और ऊर्जा के विकास की अधिक संभावनाएं है ।
- पवन ऊर्जा – पवन ऊर्जा के लिए राजस्थान , गुजराज , महाराष्ट्र , तथा कर्नाटक में अनुकूल परिस्थितियों विधमान है ।
- ज्वारीय ऊर्जा – भारत के पश्चिमी तट के साथ ज्वारीय ऊर्जा विकसित होने की व्यापक संभावनाएं है ।
- भूतापीय ऊर्जा – इसके लिए हिमालय प्रदेश , में विकसित होने की व्यापक संभावनाएं है ।
- जैव ऊर्जा – ग्रामीण क्षेत्रों में जैव ऊर्जा विकसित होने की व्यापक – – – – – – – – – – – – – – – – – –
- – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – –– – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – –
|
|
अपटत वेधन
|
- समुद्र तट से दूर समुद्र की तली में मौजूद प्राकृतिक तेल को वेधन करके प्राप्त करना अपतट वेधन है ।
- – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – –
|
|
भारत में पाए जाने वाली खनिजों की विशेषताए
|
- खनिज , असमान रूप में वितरित होते हैं । सब जगह सभी खनिज नहीं मिलते ।
- अधिक गुणवत्ता वाले खनिज , कम गुणवत्ता वाले खनिजों की तुलना में कम मात्रा में पाए जाते हैं । खनिजों की गुणवत्ता व मात्रा में प्रतिलोमी संबंध पाया जाता है ।
- सभी खनिज समय के साथ समाप्त हो जाते हैं । भूगार्भिक दृष्टि से इन्हें बनने में लम्बा समय लगता है और आवश्यकता के समय इनका तुरन्त – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – –
- – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – –
|
|
भारत में खनिजों का संरक्षण क्यों आवश्यक है ?
|
- खनिज समय के साथ समाप्त हो जाते हैं ।
- भूगर्मिक दृष्टि से इन्हें बनने में लम्बा समय लगता है ।
- आवश्यकता के समय तुरन्त इनका पुनर्भरण नहीं किया जा सकता
- सतत् पोषणीय विकास तथा आर्थिक विकास के लिए खनिजों का संरक्षण करना – – – – – – – – – – – – – – – – –
- – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – –
|
|
खनिजों का संरक्षण की विधियाँ
|
- इसके लिए ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोतों जैसे सौर ऊर्जा , पवन , तरंग व भूतापीय ऊर्जा के असमाप्य स्रोतों का प्रयोग करना चाहिए ।
- धात्विक खनिजों में , छाजन धातुओं के उपयोग तथा धातुओं के पुर्नचक्रण पर बल देना चाहिए ।
- अत्यल्प खनिजों के लिए प्रति स्थापनों का उपयोग भी खनिजों के । संरक्षण में सहायक है।
- सामरिक व अति अल्प खनिजों के निर्यात को भी घटाना चाहिए ।
- सबसे उचित तरीका है खनिजों का सूझ – बूझ से तथा मितव्यतता से प्रयोग कराना है ताकि वर्तमान आरक्षित भण्डारों का – – – – – – – – –
- – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – –– – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – –
|